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बीरबल की खिचड़ी

Receiver News Team
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Saturday, January 21, 2023, 02:18 PM
khichdi

एक बार की बात है। सर्दियों का मौसम चल रहा था। महाराज अकबर और बीरबल दिन की धूप का आनंद लेने के लिए अपने राज्य में घूम रहे थे। घूमते-घूमते दोनो एक छोटी सी नदी के पास पहुंचे। नदी के साफ पानी को देखकर अकबर ने बीरबल से कहा, ‘बीरबल अगर हम तुम्हें 100 सोने के सिक्के दें तो क्या तुम इस नदी में नहाओगे।’

बीरबल बोले – महाराज इस साफ पानी में नहाने के लिए भला 100 सोने के सिक्के देने की क्या जरूरत है। मैं तो इस नदी में ऐसे ही नहा लूंगा, लेकिन आपको इसके लिए गर्मियों के मौसम आने तक का इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि इस सर्दी के मौसम में इस ठंडे पानी में नहाकर मुझे अपनी जान नही गंवानी।
बीरबल की बात सुनकर अकबर बोले, ‘धन के खातिर इंसान कुछ भी कर सकता है, तुम्हे फिलहाल धन की जरूरत नहीं है इसलिए ऐसा बोल रहे हो.”

बीरबल बोले, ‘महाराज मैं तो क्या राज्य का कोई भी व्यक्ति धन के खातिर इस ठंडे पानी में जाने की सोचेगा नही.’
अकबर बोले, चलो देखते हैं तुम्हारी बात में कितनी सच्चाई है।

अकबर अपने एक सैनिक को बुलाते हैं और पूरे राज्य में ऐलान करवाते हैं की हमारे राज्य का कोई भी व्यक्ति एक रात इस नदी के पानी में खड़ा रहकर गुजार लेगा, तो उसे महाराज की तरफ से 500 सोने के सिक्के दिए जाएंगे।’

नदी के किनारे पर कुछ सैनिकों के रहने की व्यवस्था करी गई और नदी के एक हिस्से में रोशनी करने के लिए दो मशाल (Wooden Torch) भी जलाई गई।
पहली रात दो तीन लोग आए लेकिन वो ज्यादा देर तक ठंडा सहन नही कर पाए। और नदी से निकल गए।
दूसरी रात उस राज्य का एक गरीब धोबी आया और उसने सारी रात नदी के ठंडे पानी में रहकर गुजार दी।

सैनिकों ने जब ये बात महाराज को बताई तो वो दंग रह गए और उस धोबी को उन्होंने इनाम लेने के लिए राजमहल में बुलाया।
इनाम देने से पहले महाराज ने उससे पूछा की, ‘इतने ठंडे पानी में आंखिर तुम सारी रात खड़े रह कैसे गए?’

धोबी बोला, ‘महाराज नदी से दूर जो मशाल जली हुई थी, मैं सारी रात उस मशाल को देखता रहा और कब रात बीत गयी मुझे पता ही नहीं चला।”
धोबी की बात सुनकर महराज को गुस्सा आ गया और वो बोलो, ‘ इसका अर्थ है की तुम पूरी रात उस मशाल से गर्मी लेते रहे और तुमने धोखे से हमारी चुनौती को पूरा किया है इसलिए तुम्हें इनाम नही मिलेगा।’

दूर बैठे बीरबल ये सब सुन रहे थे लेकिन उस वक्त वो कुछ बोले नहीं।
अगले दिन दरबार में किसी विषय को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा होनी थी लेकिन दरबार में बीरबल नजर नहीं आ रहे थे।

महाराज अकबर ने एक सैनिक को बुलाया और कहा की, ‘बीरबल के घर जाओ और बीरबल को अपने साथ लेकर ही आना।’
वो सैनिक थोड़ी बाद अकेला ही वापिस आया और पूछने पर उसने बताया कि, ‘बीरबल अपने लिए खिचड़ी बना रहे हैं और जैसे ही वो पक जाएगी, तो वो तुरंत ही आ जाएंगे।’

सुबह से दोपहर हो गई लेकिन बीरबल का कोई अता पता ही नही था।
महाराज को गुस्सा आ गया और मन ही मन बड़बड़ाने लगे की, ‘आंखिर बीरबल कैसी खिचड़ी बना रहा है जो अब तक नही बनी। अब मुझे खुद ही जाकर देखना पड़ेगा।’

महाराज जैसे ही बीरबल के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा की घर की छत सहारे एक पतीला लटका हुवा है और उसके नीचे आग जली हुई है लेकिन आग उस पतीले तक पहुंच ही नहीं रही थी। और बीरबल पास ही एक चारपाई में आराम से लेटे हुवे थे।

महाराज ने गुस्से में बीरबल से पूछा, ‘बीरबल हमने तुम्हें दरबार में बुलाया था लेकिन तुम आए नही, इसका क्या कारण है।’
बीरबल बोले, ‘जहांपनाह मैंने पतीले में खिचड़ी बनाने के लिए रखी है जैसे ही खिचड़ी बन जाएगी तो मैं उसे खाकर दरबार पहुंच जाऊंगा।’

बीरबल की बात सुनकर महराज का गुस्सा और बड़ गया और वो बोलो, ‘बीरबल, पतीला तुमने आग से इतनी दूर लटका रखा है, उस तक तो गर्मी कभी पहुंच ही नहीं सकती और ना ही तुम्हारी खिचड़ी बन सकती है। और अगर ये खिचड़ी कभी पकी ही नही तो क्या तुम कभी दरबार ही नही आओगे।’

बीरबल ने शांत स्वभाव में महाराज को जवाब दिया, ‘महाराज जिस तरह उस रात धोबी ने दूर जली मशाल से गर्मी लेकर अपनी ठंड दूर कर ली थी उसी तरह दूर जली आग से ये पतीला भी गर्मी ले ही लेगा और खिचड़ी पक जाएगी।’

महाराज अकबर, बीरबल की बात समझ गए और कुछ नही बोले। उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया। अगले दिन उन्होंने धोबी को दरबार में बुलाया और उसे उसका इनाम दे दिया।

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