भले ही कोई फूल चट्टानों की दरारों के बीच छिपा हो मधुमक्खी ढूँढ़ ही लेती है कि वह कहाँ खिला है Receiver News Team team@receivernews.com Tuesday, February 21, 2023, 02:43 PM एक बार राजदरबार ने अपने ही एक सिपाही को आधा सेर चूना खाने की सजा सुनाई। निश्चित ही उसकी गुस्ताखी कुछ बड़ी रही होगी, क्योंकि आधा सेर चूना चाटने के बाद किसी भी मनुष्य का जीवित रहना मुश्किल होता है। खैर, सजा सुना दी गई थी और अगले रोज चूना खरीद के लाकर उसे भरे दरबार में चाटना था। हुक्म के अनुसार वह स्वयं पान की दुकान पर आधा सेर चूना खरीदने पहुँचा। पर जैसे ही उसने इतना चूना मांगा, दुकानदार चमक गया।... अब एक व्यक्ति और आधा सेर चूना! दुकानदार को कुछ शंका हुई, सो उसने इतना चूना एक साथ खरीदने का कारण जानना चाहा। उस व्यक्ति ने बड़े दुखी होते हुए कहा कि," मुझे कल दरबार में आधा सेर चूना एक साथ चाटना है, यही मेरी सजा है ।" दुकानदार ने कहा- "कोई बात नहीं एक काम करो, पहले आधा सेर घी लेकर मेरे पास आ जाओ, शायद मैं उससे तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ।" उसे उम्मीद की एक किरण दिखाई दी, सो वह तो यूँ गया और फटाफट आधा सेर घी लेकर आ गया। दुकानदार ने उसे आधा सेर चूना देते हुए कहा कि," कल तुम दरबार में जाने से पूर्व यह आधा सेर घी अपने घर पर ही पी लेना, फिर सजानुसार वहाँ जाकर आधा सेर चूना खा लेना और सजा निपटते ही बगैर देर किए घर लौट जाना। इससे शायद तुम बच जाओगे।" वह तो बड़ी उम्मीद लिए घर गया, और दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया जैसा दुकानदार ने समझाया था। वह घर से आधा सेर घी पीकर ही निकला। उधर सजानुसार उसने भरे दरबार में आधा सेर चूना भी खा लिया। अब चूँकि चूना खाते ही उसकी सजा पूरी हो गई थी, सो उसे वापस घर भेज दिया गया ताकि घरवालों के साथ वह अपना अंतिम समय बिता सके। उधर घर पहुँचते ही उसने फट से सारा चूना घी के साथ उल्टी कर दिया। तबीयत में कुछ नरमी तो आई परंतु सुबह तक सब ठीक हो गया। जब ठीक हो गया तो अगले दिन वह समय से दरबार में भी पहुँच गया। अब वहाँ तो सबको मालूम था कि कल इसे आधा सेर चूना खिलाया गया है, सो सब आश्चर्यचकित थे कि यह व्यक्ति जीवित कैसे बच गया? देखते ही देखते बात पूरे राजमहल में फैल गई। जल्द ही यह बात अकबर के कानों तक भी पहुँची। अकबर को भी आश्चर्य हुआ, उन्होंने अति शीघ्र उस सिपाही को दरबार में बुलवाया। उसके आते ही अकबर ने उसके जीवित रहने का राज पूछा। उसने ईमानदारी से दुकानदार की घी पीने तथा उसके पश्चात उल्टी करने वाली बात बता दी। अकबर दुकानदार की बुद्धिमानी और दूरदृष्टि पर आफरीन हो गया। उसने ना सिर्फ तत्काल दुकानदार को दरबार में बुलवाया बल्कि हाथों हाथ उसे वजीर-ए-आजम के पद पर राजसभा में नियुक्त भी कर दिया। उस दुकानदार का नाम महेशदास था, परंतु अकबर ने उसका नाम बदलकर बीरबल अर्थात् “बलवान मस्तिष्क वाला व्यक्ति” रख दिया। इतना ही नहीं, एक दिन के राजा की उपाधि से सम्मानित भी किया गया। जीवन में हमारी प्रगति, वास्तव में इस बात पर निर्भर करती है कि हम किस तरह के लोगों के साथ जुड़े हैं; क्यूँकि वातावरण का हमारी जीवनशैली पर सीधा प्रभाव पड़ता है। और हमारी जीवनशैली हमारी नियती का निर्माण करती है। हमें प्रतिभा की परख करने वाली दृष्टि और बिना पक्षपात उनका आदर करने वाला उदार दिल रखना चाहिए। Tags :